दिवाली क्यों मनाई जाती है और इसके पीछे का इतिहास: सच्चाई जानकर हो जाएंगे हैरान!
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दिवाली: एक प्राचीन पर्व
दिवाली का धार्मिक महत्व
आइये सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक, दिवाली के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं। विश्वास हो या न हो, दिवाली मनाने के कई कारण ओर पीछे की कई कथाएँ हैं। इनका पता चलने पर आप निश्चित रूप से हैरान होंगे।
दिवाली क्यों मनाया जाता है?
दिवाली, हमारे भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है – यह न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर, हमारी मूल्यवान परंपराओं की पहचान भी है। दिवाली का धार्मिक महत्व उन्हीं स्तरों पर स्थित है जहाँ अंतिम स्थायी सत्य और प्रेम का वास होता है। इस पर्व का महत्व विभाजन वाले धुंधले द्वंद्व को मिटाने वाली ज्ञान-की-जोती की जगमगाहट में होता है। दिवाली का उत्सव हमें बुराई के अंधकार से अच्छाई की ज्योति तक की यात्रा ले चलता है। यह हमें यह सिखाता है कि सत्य का मार्ग हमेशा स्वच्छ, उज्ज्वल और शास्त्रीय होता है। दिवाली के दिन हम घरों में दीप जलाते हैं, जो शुद्धता, ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक होते हैं।
दीपों की धूम: दिवाली कब मनाई जाती है?
दीपों की चमक, पटाखों की धूम, कड़ाही में घूमती मिठाईयां, हर तरफ छाई खुशियों की बहार – ऐसा लगता है जैसे सारे भारत में उत्सव की लहर दौड़ गई है. ये हैं दिवाली के रंग, जिससे पूरा देश सज जाता है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि ख़ासतौर पर दिवाली कब मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है?
इस ब्लॉग में आपको दिवाली की तारीख के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेगी, और इसके साथ ही हिन्दू पंचांग के आधार पर इसे क्यों और कब मनाया जाता है.
हिन्दू पंचांग के अनुसार
दिवाली, हिंदी पंचांग के अनुसार, कर्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है,जो अक्टूबर और नवम्बर के महीने में पड़ती है.
अलग-अलग देशों में मनाने की तारीख
विभिन्न देशों में यह त्योहार अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है:
- भारत: कर्तिक मास की अमावस्या
- नेपाल: आश्विन मास की अमावस्या
- मॉरीशस, फिजी, और त्रिणिदाद और टोबैगो: अक्टूबर अथवा नवम्बर में
हिन्दुधर्म में दिवाली का स्थान
- दिवाली का त्योहार वैसे तो हर धर्म में मनाया जाता है, लेकिन हिन्दुधर्म में इसे विशेष महत्व मिलता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार, दिवाली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवम्बर में आता है।
दिवाली की देवी लक्ष्मी से संबंध
- दिवाली के दिन धनतेरस और लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। ऐसा मानना है कि दीपोत्सव के दौरान देवी लक्ष्मी हर परिवार के द्वार पर आती हैं और उनके जीवन में समृद्धि और खुशी लाती हैं। इसलिए हम इसे “धनतेरस” या “धनत्रयोदशी” के नाम से भी जानते हैं। धनतेरस के दिन धन और समृद्धि की देवी, देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन हमारे देवी लक्ष्मी की उपासना करने से सम्पूर्ण विश्व में सर्वत्र समानता, शांति और आनंद का संचार होता है।
भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी
- देखिए, दिवाली का पर्व श्री राम की अयोध्या लौटने की खुशी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यदि मान्यताओं पर विश्वास किया जाए, तो श्री राम ने 14 वर्षों के वनवास के बाद दिवाली के दिन ही अयोध्या में वापसी की। लोगों ने उनके स्वागत में अयोध्या नगर को दियों से जगमगा दिया था।
दिवाली समारोह के विभिन्न रूप
नॉर्थ इंडिया में दिवाली का समारोह
- उत्तर भारत में, दीपावली का महोत्सव भगवान श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण की अयोध्या वापसी के दिन की याद में पूरी शानदारी से मनाया जाता है। घरों और सड़कों को दीपों से सजाया जाता है और आसमान को अत्युक्त पटाखों के रंग-बिरंगे आतिशबाजी से सजाया जाता है।
साउथ इंडिया में दिवाली की मनाई जाने की प्रथा
- साउथ इंडिया में, दिवाली को ‘नरक चतुर्दशी’ के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मारा था। बड़ी संख्या में दियों को जलाने की परंपरा, घरों की साफ-सफाई, और मिठाईयों के साथ समृद्ध खाना बनाने की परंपरा यहाँ देखने को मिलती है।
दिवाली का जश्न मनाने के अन्य तरीके
- भारत भर में दिवाली समारोह के कई अन्य तरीके हैं। कुछ स्थानों पर दिवाली को गोवर्धन पूजा के समय मनाने की परंपरा भी होती है। गोवर्धन पर्व में लोग अपने घरों में गोवर्धन पहाड़ की मूर्तियां बनाते हैं। इसके अलावा, कुछ स्थलों पर दिवाली का समारोह ‘भैजा दूज’ के रूप में भी मनाया जाता है। इनके बाहर भी, कुछ और गोलाबारी भी हैं जैसे गुजरात में पवित्र नए साल और लक्ष्मी पूजन की धूम, बंगाल में काली पूजा, और महाराष्ट्र में भाऊबीज (भाई दूज) का पर्व। सब एक ही मंत्रांकन में मिल जाते हैं – अँधेरे को प्रकाश से परास्त करने का।
दिवाली: एक सांस्कृतिक उत्सव
घरों की सजावट और स्वच्छता
- दिवाली, घरों की स्वच्छता और सजावट का त्योहार भी है। घरों को साफ किया जाता है, दीवारों और फर्शों पर रंगोलियाँ बनाई जाती हैं, और खड़ी दीपक में तेल भरकर बालकनियों , खिड़कियों और दरवाज़ों के बाहर रखे जाते हैं।
मिठाइयों और उपहारों का आदान-प्रदान
- मिठाइयों और उपहारों के आदान-प्रदान से रिश्तों में मिठास और प्यार बढ़ाने का एक रोमांचक तरीका होता है। अपने प्रियजनों, पड़ोसियों और कर्मचारियों के लिए उपहार लेना और देना दिवाली के समारोह का हिस्सा है।
पटाखों का विस्फोट
- आखिरकार, कौन दिवाली की खुशी में पटाखों के विस्फोट को भूल सकता है? जब हमारे आसमान पटाखों के रंग-बिरंगे आतिशबाजी से सज्ज होते हैं, हमें खुद को प्रकाश के महोत्सव में एक होते हुए महसूस करते हैं।
दिवाली का इतिहास
दिवाली का इतिहास
- दीपावली, हमारे यहाँ एक प्रमुख त्योहार है। यहाँ तक कि वैश्विक स्तर पर भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है। हम तलाशें दिवाली के इतिहास की, बिना किसी ग्लोबल इश्यु को छूने के।
वैदिक काल से दिवाली मनाने की प्रथा
- वैदिक काल से ही दिवाली की प्रथा मान्यताओं और धार्मिक कथाओं के साथ-साथ कथित रूप से जुड़ी हुई है। पहले यह सिर्फ फसलों की कटाई का उत्सव था, लेकिन धीरे-धीरे इसने धार्मिक अहमियत प्राप्त की। इतना ही नहीं, दिवाली को मनाने की प्रथा इतनी प्राचीन है कि इसे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है।
पुराने ग्रंथों में दिवाली का उल्लेख
- पुराने ग्रंथों जैसे कि ‘स्कंद पुराण’ और ‘पद्म पुराण’ में दीपावली के बारे में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। ये पुस्तकें हमें बताती हैं कि प्राचीन समय से ही दिवाली के दिन दीप जलाकर मनाया जाता था और यह एक सामूहिक खुशी का पर्व होता था।
दिवाली के विभिन्न धार्मिक कथाएँ
- हमारी बहुत सी धार्मिक कथाएँ दीपावली के साथ जुड़ी होती हैं। प्रमुखतः, दीपावली को भगवान श्रीराम के अयोध्या वापसी की याद में मनाया जाता है। लेकिन इसके साथ-साथ, महिला विद्वान छन्ना द्वारा की गई दशमूल वीर हनुमान की पूजा, महर्षि बाली द्वारा श्रीराम की पूजा, और भगवान विष्णु द्वारा राक्षस नरकासुर के वध को भी याद रखा जाता है।
पहली दिवाली: मान्यताएं और कथाएं
यह मान्यताएं और कथाएं दीपावली की मूल व्याख्या करने में मदद करती हैं; मान्यताओं के अनुसार, पहली दिवाली भगवान राम, माता सीता, और भ्राता लक्ष्मण की 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या वापसी पर मनाई गई थी। अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत के लिए किले और घरों में दियों को जलाया था।
सम्पूर्ण भारत में दिवाली की धूम
पश्चिम भारत में दिवाली की धूम
- पश्चिम भारत, खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में दीपावली का धमाल अपने आप में एक अद्वितीय रोमांचक उत्सव है। गुजरात में, पूरे एक मास के दीपावली उत्सव में ‘गरबा’ और ‘धांडिया’ नृत्य के साथ ख़ुशियाँ मनाई जाती हैं। महाराष्ट्र में, दीपावली को ‘लक्ष्मी पुजन’, ‘भाऊबीज’, और अनेकांतर धार्मिक रिवाज़ों के साथ मनाया जाता है।
दिवाली के मुख्य कथा के प्रमुख पात्र
- दिवाली के मुख्य कथा के प्रमुख पात्र हैं भगवान राम, श्रीमती सीता, भ्राता लक्ष्मण, वानर सेनापति हनुमान और दैत्य राजा रावण। इन्हें आदर, प्यार और भगवान की प्रतीक भाग्य माना जाता है।
दिवाली के पीछे की सच्ची कहानियां
भगवान श्रीराम की वापसी
- दिवाली का पुरानी कहानियों में विशेष स्थान है। इसे भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में मनाया जाता है। 14 साल के वनवास के बाद श्रीराम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, उसी खुशी के स्थानीय लोगों ने पूरे शहर में दीप जलाये थे।
श्रीराम का राज्याभिषेक और आनंदोत्सव
- अयोध्या में भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक एक महा-अनंदोत्सव था जिसमें दीपावली की रौनक और उत्साह की छाप थी। पूरे राज्य में दीपावली की तरह ही दीप जलते थे।
सीता जी का स्वयंवर और विवाह
- भगवान श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र की सहायता से सीता जीके स्वयंवर में शिव धनुष को तोड़कर उन्हें जीता। जनकपुर में भव्य विवाह समारोह के बाद उन्होंने सीता जी और बहन उर्मिला के साथ अपना धनुर्वेद ले लिया।
दिवाली और महावीर का निर्वाण
- जैन धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्व है। इसे महावीर स्वामी के मोक्ष की खुशी में मनाया जाता है।
सम्पूर्ण भारत में दिवाली की धूम
- भारत की छोटी-बड़ी गलियों, शहरों, गाँवों और राज्यों में इसे बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
दिवाली: परंपरा से आधुनिक युग की चमक
- हमें ध्यान देना चाहिए कि जैसे-जैसे समय बदल रहा है, ऐसे ही हमारे त्योहारों की परंपराएं भी बदल रही हैं। नई पीढ़ी साहित्य, शिक्षा और तकनीक के प्रभाव से बहुत प्रभावित होती है।
दिवाली: परंपराएं और रेढ़ियों पर दियों की बाज़ार
- दिवाली ना केवल हिन्दी परंपराओं और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, बल्कि यह मन को सुख और खुशी का एक खजाना भी है। जिस तरह दीपावली के दिन घरों में दियों का प्रकाश होता है उसी तरह इस त्योहार ने लोगों के दिलों को भी प्रकाशित किया है। आइये जानते हैं कि कैसे!
रेढ़ियों पर दीपावली के दिन दियों की बाजार होती है। चाहे वे मिट्टी के दीपक हों, ग्लास के दीपक हों या फिर केन्दलीत दीपक, हर एक दीपक की अपनी ख़ासियत होती है। छोटे बच्चे तो दीपक देखते ही उत्साहित हो जाते हैं और उनके मन में सराबोर हो जाती है खुशी।
परंपरागत दीपक बनाने की कला
दिवाली के दिन, दियों को घरों में रखकर देखने से कितनी अच्छी लगती है, वो बच्चे-बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक सभी जानते होते हैं। और यही है जो दिवाली को इतना खास बनाता है। घरों की दीवारों पर चमकते हुए दीपक देख कर ऐसा लगता है जैसे कितनी खुशियों की बरम्बार हो रही हो।
आजकल कागज़, मिट्टी या फिर मोम से बने विविध रंगों व आकारों के दीपों का बाजार होता है। खासकर बच्चे तो इन दीपों की ओर मोहित हो जाते हैं। इनमें से कुछ दीपक ऐसे होते हैं जो पर्व के आनंद को दोगुना कर देते हैं।
- परंपरागत दीपक बनाने की कला एक ऐसा निपुणता है जिसे पीढ़ी से पीढ़ी सौंपा गया है।
- दीपक बनाने के लिए मिट्टी, तेल और बाती का उपयोग किया जाता है.
- मिट्टी के दीपक में बाती डालकर उसपर तेल डाला जाता है और तेल को पीने के बाद बाती को जलाया जाता है।
- ये प्रोसेस सिंपल होने के साथ-साथ प्राकृतिक और पर्यावरण अनुकूल भी होती है।
दिवाली की सजावट के लिए विभिन्न प्रकार के दीपक
पुराने जमाने में लोग मिट्टी के दियों का उपयोग करते थे, लेकिन आजकल विभिन्न आकार और डिजाइन में उपलब्ध दियों की वजह से लोगों के पास अब ऐसे दीपक चुनने के बहुत सारे विकल्प हैं जो उनके घर की सजावट के अनुसार फिट होते हैं। आप बालकनी, छत या बगीचे को सजाने के लिए गेहूं या बांस के दियों का चुनाव कर सकते हैं, जो न सिर्फ दीवारों को सजाने में मदद करते हैं, बल्कि पूरे घर को एक खुशनुमा और प्रसन्न वातावरण में बदल देते हैं।
- दिवाली की सजावट के लिए विभिन्न प्रकार के दीपक का उपयोग होता है।
- मिट्टी के दीपक, चांदी के दीपक, ब्रास के दीपक, ग्लास के दीपक और अन्य ऐसे ही विभिन्न प्रकार के दीपक हो सकते हैं।
- दीपकों का आकार और आकृति भी अलग-अलग हो सकती है।
- इनमें से कुछ दीपक तांबे, सोने, चांदी और अन्य धातुओं से बने होते हैं, जबकि कुछ दीपक कांच, मिट्टी, चीनी मिट्टी और अन्य सामग्रियों से बने होते हैं।
दिवाली दीपकों की ऑनलाइन खरीद
- इंटरनेट के युग में ऑनलाइन खरीदारी करना इतना आसान हो गया है कि आप दिवाली के दियों को भी घर बैठे खरीद सकते हैं। और आपको बाजार में भीड़-भाड़ का सामना नहीं करना पड़ता। ऑनलाइन खरीदारी वेबसाइट्स और ऐप्स पर दिवाली के दियों का विभिन्न रंग, आकार और डिजाईन में विस्तृत संग्रह होता है। बस आपको अपनी पसंद का दिया चुनना होता है, और वह आपके घर पहुंच जाता है।
दिवाली और पटाखों का संबंध: आवश्यकता या प्रदूषण का कारण
- यह बात सत्य है कि पटाखे दिवाली का अटूट अंग हैं। हमारे संस्कारों में से एक है कि हम दिवाली की खुशी में पटाखे फोड़ते हैं। दिवाली और पटाखों का संबंध आवश्यकता और प्रदूषण के बीच एक बालिका चिंतन सूचित करता है। पटाखों का उपयोग ख़ुशी मनाने का एक परंपरागत तरीका हुआ करता था, लेकिन अब यह एक मुद्दा बन चुका है क्योंकि ये प्रदूषण का कारण बन रहे हैं। लेकिन, हमें यह भी समझना चाहिए कि पटाखों से उत्पन्न होने वाले ध्वनि और वायु प्रदूषण से हमारे पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है।
पटाखों का इतिहास और ग्रंथों में उनका उल्लेख
- पटाखों का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है। क्या आपको पता है कि पटाखे का आविष्कार चीनी लोगों ने किया था? फिर धीरे-धीरे यह विभिन्न देशों, जैसे भारत, में फैल गया। ग्रंथों और पुरानी पुस्तकों में इसका उल्लेख मिलता है। जब हम बात करते हैं पटाखों के इतिहास की, तो हमें सबसे पहले चीनी और भारतीय संस्कृति का ध्यान देना चाहिए, जहां पटाखों का उपयोग मनोरंजन और धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान होता था। हिन्दी ग्रंथों में पटाखों के उपयोग का उल्लेख मिलता है, जो दिखाता है कि यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन, जैसा कि हम जानते हैं, हर चीज का अच्छा और बुरा पहलू होता है, इसी तरह पटाखों का भी है।
पटाखों के द्वारा होने वाले प्रदूषण के प्रभाव
पटाखों से प्रदूषण के प्रभाव बहुत ही नकारात्मक होते हैं। इनमें से कुछ प्रभाव तत्कालीन होते हैं और कुछ दीर्घकालिक। पटाखों से होने वाले प्रदूषण से आवश्यकतानुसार वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, और भूमि प्रदूषण की समस्या का सामना करना पड़ता है।
- पटाखों का मुख्य नकारात्मक प्रभाव प्रदूषण बढ़ाना है।
- पटाखों के द्वारा होने वाले वायुमंडलीय प्रदूषण से धूल, रसायन और कठिनाईयों को वायुमंडल में जमा किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- आवाज़ का प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है।
इसके अलावा, ये पशुपक्षियों के लिए भी बहुत हानिकारक होते
स्वच्छ और हरित दिवाली की ओर कदम बढ़ाएँ
- मेरे विचार से, हमें अब स्वच्छ और हरित दिवाली की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। यानी, हमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ों का उपयोग कम करना चाहिए। इस धूमधाम और खुशी के मौसम में, हमें हरे भरे, स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। पटाखों के बजायें, हमें दीपों, दियों, और खुशनुमा रंगों से अपने घर, बालकनी, और आंगन को सजाना चाहिए। हमें दीपों में तेल के बजाय गाय का घी या सूफ़ जलाने का पर्याय चुनना चाहिए, जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए भला है, बल्कि यह अनुकूलन की भावना भी जगाता है।
आधुनिक समय में दिवाली का मनाने का तरीका
- आधुनिक समय में दिवाली मनाने के तरीके भी काफी बदल चुके हैं। लोग अब अधिकतर दीपों को बजाय LED लाइट्स का इस्तेमाल करते हैं जो की ज्यादा सुरक्षित और स्वच्छ मानी जाती हैं। साथ ही, लोग अधिकतर घरेलू उपचारों के साथ दिवाली की सजावट करना पसंद करते हैं, जैसे कि आंगन में रंगोली बनाना, घर की सफाई क्रना, और द्रव्य दान करना। दिवाली को मनाने के आधुनिक तरीके में, हम अब “ई-दिवाली” मनाने की ओर अग्रसर हैं। हम डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे कि ई-मेल, सोशल मीडिया, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि, दिवाली की शुभकामनाएं देने के लिए।
कोरोना काल में दिवाली के समारोह
- काश! हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हम कोरोना काल में दिवाली मनाएंगे। लेकिन जिंदगी की हकीकत है। हम सभी को अपने आप को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है। पिछले दो साल से, दुनिया भर में कोरोना महामारी के कारण दिवाली मनाने के तरीके में बड़े परिवर्तन आए हैं। अब लोग बड़े सामूहिक समारोहों के बजाय छोटे परिवारिक समारोह मना रहे हैं। इसके अलावा, लोग दिवाली की बधाई और उपहार डिजिटल रूप में भेजने लगे हैं, क्योंकि यह इस समय सबसे सुरक्षित रूप माना जा रहा है।
डिजिटल युग में दिवाली की बधाई
- डिजिटल युग में, लोग दिवाली की बधाई पाठ मेसेज, ईमेल, या सोशल मीडिया के माध्यम से भेजने लगे हैं। इसके अलावा, ऑनलाइन उपहार कार्ड्स और वाउचर्स का भी चलन बढ़ गया है। यह सिर्फ एक सहज, सुरक्षित और प्रभावी तरीका नहीं है दिवाली की खुशियाँ बाँटने का, बल्कि यह एक मजेदार और अद्वितीय तरीका भी है! डिजिटल युग ने हमें परिवार और दोस्तों के साथ दिवाली मनाने के नए तरीके दिए हैं। हम वीडियो कॉल के माध्यम से दूर बैठे हुए अपने प्यारे से परिवार के साथ दिवाली मना सकते हैं।
दिवाली की एको-फ्रेंडली मनाई
- एको-फ्रेंडली दिवाली मनाने के लिए हमें पटाखे नहीं, बल्कि दीपकों का प्रयोग करना चाहिए। हमें बाज़ार से प्लास्टिक की चीजें खरीदने के बजाय उन्हें घर पर बनाना चाहिए।
सारांश: ‘दिवाली: इतिहास, पर्व और आधुनिक प्रथाएं’ का संक्षेप
- दिवाली को मनाने के पीछे कई धार्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कथाएँ होती हैं। हमने इन सबका चर्चा किया है। आखिरकार, यह हमारे उत्साह और खुशी का पर्व है जो हमें एकजुट करता है और हमें बाहर निगल कर खुशी मनाने का मौका देता है। तो आइये, इस दिवाली, हमारे अन्दर की बुराई और अंधकार को खत्म करें। और नई उम्मीदों, सपनों और खुशियों की ज्योति जलायें।
दिवाली भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख त्योहार है। इतिहास में इसका महत्व अनगिनत कहानियों और लोककथाओं से साबित होता है। दिवाली किसी न किसी स्वरूप में भारत के सभी धर्मों, जातियों और समदायों द्वारा मनायी जाती है।
प्रमुख सवाल और उनके उत्तर
- क्यों मनाई जाती है दिवाली?
दिवाली को मनाने का कारण भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने के दिन से जुड़ा हुआ है।
- दिवाली मनाने के पीछे की असली कहानी क्या है?
दिवाली मनाने के पीछे की असली कहानी भगवान श्री राम, माता सीता और भैया लक्ष्मण के अयोध्या लौटने से जुड़ी है।
- विभिन्न भागों में दिवाली के मनाने के तरीके में क्या अंतर होता है?
दिवाली के मनाने के तरीके राज्य के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ राज्यों में दिवाली को भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ मनाया जाता है, जबकि कुछ राज्यों में यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के साथ मनाया जाता है।